Sunday, 1 December 2024

भोपाल में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की ताकत: श्री ओम प्रकाश जैन जी द्वारा आगामी सम्मेलन में सरकार से समर्थन की अपील

इलेक्ट्रो होम्योपैथी कॉउंसिल ऑफ़ मध्य प्रदेश के अध्यक्ष श्री ओम प्रकाश जैन जी आगामी 4 दिसंबर 2024 को राष्ट्रीय इलेक्ट्रो होम्योपैथी दिवस पर आयोजित होने वाले एक ऐतिहासिक सम्मेलन में अध्यक्षीय उद्बोधन के दौरान 'भारत में इलेक्ट्रो होम्योपैथी के भविष्य की दिशा: सरकारी मान्यता और समर्थन के लिए संभावनाएँ' विषय पर सम्बोधित करेंगे।

इस सम्मेलन का आयोजन बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय में सुबह 10:00 बजे से किया जाएगा। सम्मेलन में डॉक्टरों, विशेषज्ञों, चिकित्सा पद्धतियों के शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं का एक बड़ा दल एकत्रित होगा, जिनका उद्देश्य इलेक्ट्रो होम्योपैथी के महत्व और इसकी सरकारी मान्यता की आवश्यकता पर चर्चा करना है। इस आयोजन के माध्यम से, श्री ओम प्रकाश जैन जी और अन्य वक्ता इलेक्ट्रो होम्योपैथी के लाभों, इसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण, और इसके समाज में स्वीकृति की दिशा में हो रहे प्रयासों पर विस्तार से बात करेंगे।

डॉ. नन्द लाल सिन्हा जी को श्रद्धांजलि

सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है डॉ. नन्द लाल सिन्हा जी के योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित करना। डॉ. सिन्हा जी ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी को भारत में स्थापित करने और उसे सरकारी मान्यता दिलवाने के लिए अनगिनत संघर्ष किए। उनके अथक प्रयासों के कारण ही आज यह पद्धति भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुकी है। सम्मेलन में डॉ. सिन्हा जी की मेहनत और समर्पण को याद किया जाएगा, और उनके दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया जाएगा।

इलेक्ट्रो होम्योपैथी की विशिष्टता और आवश्यकता

इलेक्ट्रो होम्योपैथी, जिसे इटली के डॉ. काउंट सीजर मैटी ने 1865 में खोजा था, एक अत्याधुनिक और ऊर्जा आधारित चिकित्सा पद्धति है। इसमें औषधियाँ वनस्पति पौधों से तैयार की जाती हैं, जो शरीर में ऊर्जा का संचार करती हैं और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के माध्यम से शरीर के अंगों के सेल और टिश्यू को सक्रिय करती हैं। डॉ. मैटी के अनुसार, शरीर में रस (Lymph) और रक्त (Blood) के दूषित होने से रोग उत्पन्न होते हैं, और इन दोनों चैतन्य पदार्थों को शुद्ध करने वाली औषधियाँ इलेक्ट्रो होम्योपैथी प्रदान करती है। इस पद्धति में न केवल लक्षणों का इलाज किया जाता है, बल्कि रोग के मूल कारणों का भी उपचार किया जाता है, जिससे यह अधिक प्रभावी बनती है।

सरकारी मान्यता की दिशा में प्रयास

इस समय भारत में इलेक्ट्रो होम्योपैथी को सरकारी मान्यता दिलवाने के लिए कई प्रयास हो रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एक आईडीसी टीम का गठन किया गया है, जिसने इस पद्धति के वैज्ञानिक पहलुओं और चिकित्सा में इसके योगदान पर कई बैठकों का आयोजन किया है। इस दिशा में रिपोर्ट तैयार की जा रही है, जो सरकार को प्रस्तुत की जाएगी। मध्य प्रदेश में भी इस पद्धति की मान्यता के लिए कोशिशें तेज हो चुकी हैं।

सम्मेलन का उद्देश्य

इस सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य इलेक्ट्रो होम्योपैथी के वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इसके प्रभावी इलाज के तरीकों को समाज और सरकार के सामने प्रस्तुत करना है। साथ ही, यह सुनिश्चित करना है कि इस चिकित्सा पद्धति को जल्द से जल्द सरकार से मान्यता मिल सके। सम्मेलन में यह भी चर्चा की जाएगी कि कैसे इलेक्ट्रो होम्योपैथी देश में स्वास्थ्य सेवा के लिए एक मूल्यवान और प्रभावी विकल्प हो सकती है।

सम्मेलन की मुख्य बातें:

- तिथि: 4 दिसंबर 2024
- समय: सुबह 10:00 बजे
- स्थान: बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, होशंगाबाद मार्ग, भोपाल-462026
- आयोजक: इलेक्ट्रो होम्योपैथी काउंसिल ऑफ मध्य प्रदेश

यह सम्मेलन उन सभी चिकित्सा पेशेवरों और रोगियों के लिए एक प्रेरणा साबित होगा जो वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के प्रति रुचि रखते हैं और जिन्हें इलेक्ट्रो होम्योपैथी के फायदों के बारे में जानकारी प्राप्त करनी है। साथ ही, यह भारत में इस पद्धति को मुख्यधारा की चिकित्सा पद्धतियों में एक मान्यता प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।



Friday, 29 November 2024

"आईडीसी बैठक में डॉ. अजय हार्डिया ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के इलाज पर दिए प्रमाण, सरकारी अस्पतालों में प्रयोग की दी सलाह"

डॉ. अजय हार्डिया, जो कि ‘मध्य प्रदेश रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन ऑफ इलेक्ट्रो होम्योपैथी’ (MPRDOEH) से हैं, से उनकी प्रस्तुतियाँ देने को कहा गया। चूंकि वे मूल पक्ष का हिस्सा थे, चेयरपर्सन ने उनसे पूछा कि वे कौन से अतिरिक्त बिंदु प्रस्तुत करेंगे। डॉ. हार्डिया ने उत्तर दिया कि वे भले ही संयुक्त निकाय का हिस्सा हैं, लेकिन वे अपनी बात रखना चाहते हैं, क्योंकि संयुक्त निकाय उनकी बातों को नहीं सुनना चाहता और उन्होंने जो दस्तावेज सरकार को सौंपे हैं, वे उनके साथ साझा नहीं किए गए हैं। चेयरपर्सन ने उनसे सात बिंदु मानदंडों के संदर्भ में बिंदुवार बात करने को कहा। डॉ. हार्डिया ने कहा कि उन्होंने अपने दस्तावेज़ पहले ही प्रस्तुत किए हैं। 

जब श्री डी.आर. मीणा, निदेशक (DHR) ने बताया कि उनके दस्तावेज़ IDC के सदस्यगणों के बीच प्रसारित किए जा चुके हैं, तो चेयरपर्सन ने अतिरिक्त प्रति मांगी। फिर चेयरपर्सन ने डॉ. हार्डिया से सात बिंदुओं के संदर्भ में विशिष्ट प्रस्तुतियाँ देने को कहा। डॉ. हार्डिया ने कहा कि वे इस संदर्भ में अन्य सभी प्रस्तुतियों से सहमत हैं। 


उन्होंने बताया कि वे देवी अहिल्या अस्पताल में कार्यरत हैं, जो 1991 में स्थापित हुआ था और 1996 में OPD की शुरुआत हुई थी। 2003 में उन्होंने 100 बिस्तरों वाले इलेक्ट्रो होम्योपैथी क्लिनिकल ट्रायल अस्पताल की शुरुआत की और उन्होंने इंदौर, मध्य प्रदेश में भी अस्पताल स्थापित किया। उन्होंने पैलियेटिव रोगों पर शोध किया है और अच्छे परिणाम प्राप्त किए हैं। 2019 में उन्होंने इंदौर में कैंसर केंद्र की शुरुआत की, जिसमें 100 बिस्तर हैं, और वहां ऐसे कैंसर मरीजों का इलाज किया जा रहा है जो अन्य अस्पतालों जैसे कि टाटा अस्पताल से कीमोथेरेपी, रेडिएशन और सर्जरी करवाकर लौटे थे, और दर्द में थे। उन्होंने ऐसे मरीजों के डेटा भी प्रस्तुत किए हैं। इस पर चेयरपर्सन ने टिप्पणी की कि दस्तावेज पढ़े जाएंगे और अब डॉ. हार्डिया को सात मानदंडों के संदर्भ में बात करनी चाहिए। 

जब डॉ. काटोच ने डॉ. हार्डिया से पूछा कि क्या उन्होंने स्वास्थ्य और रोग के मौलिक सिद्धांतों का प्रमाण प्रदान किया है, जैसा कि आवश्यक मानदंड नंबर एक में कहा गया है, तो उन्होंने कहा कि उन्होंने यह दस्तावेज़ उसी दिन भेजे हैं। 

चेयरपर्सन ने टिप्पणी की कि वह उन दस्तावेज़ों को पढ़ सकते हैं, लेकिन कैसे अन्य समिति सदस्य उन्हें पढ़ेंगे, क्योंकि कई लोग सुबह 8 बजे से ही दस्तावेज़ भेज रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह बाद में दस्तावेज़ पढ़ सकते हैं, लेकिन अन्य सदस्य कैसे उन्हें पढ़ेंगे? उन्होंने पूछा कि क्या उनके द्वारा भेजे गए दस्तावेज़ में सात बिंदुओं, पांच आवश्यक और दो वांछनीय बिंदुओं से संबंधित सभी रिकॉर्ड शामिल हैं। 

उन्होंने डॉ. हार्डिया से अनुरोध किया कि वे प्रमुख बिंदुओं को ही उजागर करें। डॉ. हार्डिया ने कहा कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी उपचार सभी बीमारियों, जैसे कि एक्यूट व क्रोनिक बीमारियों को कवर करता है, और उन्होंने मूत्राशय कैंसर के मामलों का इलाज किया है। मेटास्टैटिक कैंसर (जो एलोपैथी से रिजेक्ट हो गए थे) को भी उन्होंने ठीक किया है। उन्होंने 10 मामलों का डेटा प्रस्तुत किया, जैसे ल्यूकेमिया, स्तन कैंसर, पैनक्रियाटिक कैंसर, जिन्हें पूरी तरह से ठीक किया गया है। इस प्रकार, उनके अस्पताल में लगभग 5,500 मामलों में से 60-70% मामलों में मरीजों को उपचार के सकारात्मक परिणाम मिले हैं।

चेयरपर्सन से एक सवाल के जवाब में, डॉ. हार्डिया ने बताया कि उनके अस्पताल में चार MBBS डॉक्टरों द्वारा इलाज किया जाता है और इलेक्ट्रो होम्योपैथी की दवाइयाँ उपयोग की जाती हैं। इसका मतलब है कि चेयरपर्सन ने टिप्पणी की कि जब कोई नया मरीज आता है, तो उसका निदान एक एलोपैथिक डॉक्टर द्वारा किया जाता है (जो कि डॉक्टर का कार्य है), फिर वे इसे अपनी इलेक्ट्रो होम्योपैथी की वर्गीकरण के अनुसार वर्गीकृत करते हैं।

वर्गीकरण के बाद, वे इलेक्ट्रो होम्योपैथी दवाइयाँ देते हैं। चेयरपर्सन से सवाल किए जाने पर, डॉ. हार्डिया ने बताया कि वे अपनी प्रयोगशाला में दवाइयाँ कोहोबेशन पद्धति के अनुसार तैयार करते हैं जैसा कि डॉ. एन.एल. सिन्हा की किताबों में लिखा गया है, और कुछ दवाइयाँ आयात भी की जाती हैं। 

फिर उन्होंने IDC टीम से देवी अहिल्या अस्पताल का दौरा करने का अनुरोध किया ताकि वे वहां के विभिन्न गतिविधियों का लाइव प्रदर्शन देख सकें, जिसमें यह भी शामिल है कि वे मरीजों का इलाज कैसे करते हैं। 

चेयरपर्सन ने कहा कि इस अनुरोध को नोट कर लिया गया है और यह उनके मीटिंग के मिनट्स में रखा जाएगा। इस संदर्भ में, चेयरपर्सन ने यह उल्लेख किया कि आयुष मंत्रालय के तहत एक समिति ने कुछ इलेक्ट्रो होम्योपैथी संस्थाओं का निरीक्षण किया था, और यह स्पष्ट नहीं था कि डॉ. हार्डिया का केंद्र उस सूची में शामिल है या नहीं। यह जानकारी बाद में DHR के ध्यान में आई और उन्होंने डॉ. हार्डिया को पत्र की प्रति भेजी। उनका अनुरोध उन्हें अग्रेषित किया जा सकता है।

डॉ. हार्डिया ने फिर सुझाव दिया कि एक सरकारी अस्पताल का चयन किया जाए जहां निदान/उपचार सरकारी डॉक्टरों द्वारा किया जाए, लेकिन इलाज इलेक्ट्रो होम्योपैथी की दवाइयों से किया जाए, उदाहरण के लिए, मस्तिष्क रोग, हृदय रोग, गुर्दे की बीमारी, यकृत रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के मामलों में। 

वे पांच बीमारियों का चयन करेंगे, दवाइयाँ उनकी होंगी, टीम उनकी होगी, और विशेषज्ञ डॉक्टर सरकारी होंगे। और इसे एक/दो महीने तक देखा जा सकता है। चेयरपर्सन ने टिप्पणी की कि उन्होंने उनके विश्वास और चुनौती की सराहना की, लेकिन सरकार इसे कैसे लागू करेगी, यह IDC का कहना नहीं हो सकता। समिति केवल दस्तावेजों को देखकर निर्णय लेगी, क्योंकि जजों की सीमा कागजात तक ही है। 

हालांकि, अगर वे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए कुछ काम करते हैं, तो समिति को कोई आपत्ति नहीं है। समिति इस मामले में कोई दिशा-निर्देश नहीं दे सकती, लेकिन वे इस अनुरोध के लिए एक अलग पत्र भेज सकती है। 

फिर चेयरपर्सन ने पूछा कि इस पद्धति को किस देश में मान्यता प्राप्त है। डॉ. हार्डिया ने उत्तर दिया कि इस पद्धति को दुनिया के किसी भी देश में मान्यता प्राप्त नहीं है। चेयरपर्सन ने टिप्पणी की कि इसका मतलब यह है कि भारत को इसे बढ़ावा देना होगा, जहां इसे इतनी लंबी अवधि से उपयोग में लाया जा रहा है, और इसे उचित जांच/विचार की आवश्यकता है।

Thursday, 28 November 2024

डॉ. एन. एल. सिन्हा: भारत में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी के नायक, जिन्होंने चिकित्सा जगत में क्रांति ला दी!

इलेक्ट्रो होम्योपैथी एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जिसका विकास 19वीं सदी के अंत में हुआ और इसे भारत में अपनाने की प्रक्रिया बहुत ही लंबी और संघर्षपूर्ण रही। यह चिकित्सा पद्धति, जो मुख्य रूप से प्राकृतिक अवयवों और ऊर्जा के संयोजन पर आधारित है, इटली के डॉ. कॉउंट सीजर मैटी द्वारा विकसित की गई थी। हालांकि, भारत में इसके प्रसार और स्वीकृति का रास्ता आसान नहीं दिखा और इसके लिए कई वर्षों से संघर्ष जारी है। 

इलेक्ट्रो-होम्योपैथी का भारत में आगमन

इलेक्ट्रो-होम्योपैथी का भारत में प्रसार 1870 और 1880 के बीच हुआ। पहले पहल इसे भारत में लोकप्रिय बनाने में डॉ. अन्ना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्होंने 1885 में मद्रास प्रेसीडेंसी (ब्रिटिश भारत) में इस पद्धति का प्रचार-प्रसार किया। डॉ. अन्ना ने भारत और दक्षिण एशिया में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी दवाओं का वितरण शुरू किया और धीरे-धीरे यह पद्धति अन्य स्थानों पर भी फैलने लगी। 1890 में, डॉ. फादर अगस्तस मुलर ने कर्नाटका के मंगलौर में एक इलेक्ट्रो-होम्योपैथी पर आधारित कुष्ठ रोग अस्पताल और आश्रम स्थापित किया, जो इस पद्धति की प्रभावशीलता का प्रमाण था।


डॉ. एन. एल. सिन्हा और इलेक्ट्रो-होम्योपैथी का भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में प्रवेश

भारत में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी का असली प्रसार डॉ. एन. एल. सिन्हा द्वारा किया गया, जिन्होंने इसे भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए अथक प्रयास किए। डॉ. सिन्हा का जन्म 30 अगस्त 1889 को हुआ था और उन्होंने 1908 में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी का अभ्यास शुरू किया। उन्हें यह पद्धति एक पुस्तक "Stepping Stones to Electro-Homeopathy" के माध्यम से मिली, जिसे डॉ. ए. जे. एल. ग्लिडन ने लिखा था। डॉ. सिन्हा ने 1911 में लंदन स्थित "Superior Independent School of Applied Medical Sciences" से एम.डी. (इलेक्ट्रो-होम्योपैथी) की डिग्री प्राप्त की और भारत लौटकर उन्होंने अपनी चिकित्सा पद्धति की शुरुआत की।

डॉ. सिन्हा ने 1912 में सीतापुर में एक इलेक्ट्रो-होमियोपैथी संस्थान स्थापित किया और 1918 तक वहां इसका अभ्यास किया। इसके बाद, उन्होंने कानपुर में अपने काम को फैलाया और 1920 में "नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ इलेक्ट्रो-कॉम्प्लेक्स होम्योपैथी" की स्थापना की। उनकी किताब "फंडामेंटल लॉज़ एंड मैटेरिया मेडिका ऑफ इलेक्ट्रो-होम्योपैथी" ने इस पद्धति को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने में मदद की। डॉ. सिन्हा का यह कार्य न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी इलेक्ट्रो-होमियोपैथी की पहचान बनाने में सहायक सिद्ध हुआ।

सरकारी परीक्षण और संघर्ष: डॉ. सिन्हा का संघर्ष

डॉ. सिन्हा का इलेक्ट्रो-होम्योपैथी की सरकारी मान्यता के लिए संघर्ष एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उन्होंने देखा कि इस पद्धति की प्रभावशीलता को प्रमाणित करने के लिए सरकारी समर्थन आवश्यक था। इस दिशा में उन्होंने कई प्रयास किए, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण था 1951 में उत्तर प्रदेश सरकार से चिकित्सा परीक्षण की मांग। डॉ. सिन्हा ने 1948 में हिदायत अली नामक एक कुष्ठ रोगी का इलाज शुरू किया, जो पिछले 12 वर्षों से बीमारी से ग्रस्त था और छह साल से अस्पताल में भर्ती था।

डॉ. सिन्हा ने हिदायत अली का इलाज छह महीने के भीतर किया और वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया। इस उपचार के बाद, सरकार ने इस पद्धति को मान्यता देने का वादा किया। हालांकि, इसके बाद सरकार ने इस वादे को पूरा नहीं किया, और इस पर डॉ. सिन्हा ने अनशन शुरू किया। 1 जुलाई 1951 को उन्होंने उत्तर प्रदेश के चिकित्सा और स्वास्थ्य निदेशक के कार्यालय में अनशन शुरू किया, यह एक अभूतपूर्व कदम था, जो पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। 

अनशन और सरकार की प्रतिक्रिया

डॉ. सिन्हा का अनशन एक महीने तक चला, और उनके आंदोलन ने एक नई लहर पैदा की। आम जनता, चिकित्सकों और समाज के विभिन्न वर्गों से उन्हें समर्थन मिला। अंततः सरकार ने 1951 के अंत में छह और कुष्ठ रोगियों को इलाज के लिए डॉ. सिन्हा को सौंपने का वादा किया। हालांकि, इस वादे के बाद भी सरकार ने डॉ. सिन्हा को दवाओं की आपूर्ति में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। 

डॉ. सिन्हा का संघर्ष अनवरत जारी रहा, और उन्होंने इलेक्ट्रो-होमियोपैथी को मान्यता दिलाने के लिए कई और प्रयास किए, लेकिन अफसोस, सरकारी निकायों से कभी ठोस कदम नहीं उठाए गए। उनके इस निरंतर संघर्ष ने इलेक्ट्रो-होम्योपैथी को व्यापक स्तर पर फैलने से रोक दिया, लेकिन इसके बावजूद उनका योगदान अविस्मरणीय है। 

डॉ. सिन्हा का अंतिम योगदान और निधन

डॉ. एन. एल. सिन्हा ने न केवल अपनी चिकित्सा पद्धति को फैलाया, बल्कि इसके सिद्धांतों, चिकित्सा विधियों और दवाओं पर गहन शोध किया। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में इलेक्ट्रो-होम्योपैथी पर विस्तृत जानकारी दी गई। उन्होंने इसे एक वैज्ञानिक पद्धति के रूप में स्थापित करने की कोशिश की, और इसके लिए कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से भी संपर्क किया। 

उनका जीवन संघर्ष और समर्पण का प्रतीक था। डॉ. सिन्हा का निधन 30 अगस्त 1979 को हुआ, लेकिन उन्होंने अपने पीछे एक मजबूत धरोहर छोड़ी। उनकी किताबों और लेखों के माध्यम से इलेक्ट्रो-होम्योपैथी के अनुयायी आज भी उनके योगदान को याद करते हैं।

इलेक्ट्रो-होम्योपैथी का भारत में सफर आसान नहीं था। यह एक लंबा और कठिन संघर्ष था, जिसमें डॉ. एन. एल. सिन्हा जैसे समर्पित और निष्ठावान व्यक्तित्व ने इसे भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया। उनके प्रयासों ने यह सिद्ध कर दिया कि कोई भी चिकित्सा पद्धति यदि वैज्ञानिक रूप से प्रभावी हो, तो वह समाज में बदलाव ला सकती है, भले ही उसे मंजूरी मिलने में वक्त लगे। डॉ. सिन्हा का जीवन हमें यह सिखाता है कि अगर निष्ठा और समर्पण से किसी उद्देश्य की दिशा में काम किया जाए, तो अंततः सफलता मिलती है।



Monday, 8 May 2023

तम्बाकू और ई-सिगरेट के विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया के स्वास्थ्य मंत्री का ऐतिहासिक कदम: डॉ. अजय हार्डिया

तम्बाकू और ई-सिगरेट के विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया के स्वास्थ्य मंत्री मार्क बटलर ऐतिहासिक कदम उठा रहे हैं, भारत के स्वास्थ्य मंत्री कब जागेंगे?

कैंसर बीमारी के विरुद्ध कार्य कर रहे संस्थानों के लिए आज वैश्विक पटल पर एक अहम मुद्दा हम सभी के सामने आया। ऐसे में अपने भारत के लोगों से इस खबर को साझा करना भी मेरे लिए महत्वपूर्ण है। 

ऑस्ट्रेलिया की सरकार देश में तम्बाकू और और ई-सिगरेट उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने जा रही है। ऑस्ट्रेलिया के युवाओं को बेहतर जिंदगी देने के लिए वहां की सरकार ई-सिगरेट के लिए न्यूनतम गुणवत्ता मानकों को पेश करेगी, जिसमें स्वाद, रंग और अन्य सामग्री को प्रतिबंधित करना शामिल है। अब ऑस्ट्रेलिया में ई-सिगरेट उत्पादों को फार्मास्युटिकल जैसी पैकेजिंग की आवश्यकता होगी। सभी एकल-उपयोग, डिस्पोजेबल ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।

सोमवार रात एबीसी के क्यू एंड ए पर बोलते हुए, स्वास्थ्य मंत्री, मार्क बटलर ने कहा कि तंबाकू उद्योग ई-सिगरेट के माध्यम से "निकोटीन की लत की नई पीढ़ी" बनाने की कोशिश कर रहा था और वह "इस सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे पर मुहर लगाने के लिए दृढ़ संकल्पित" था।

ऑस्ट्रेलिया के कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आवाज उठाई है कि गलत लेबलिंग और आयात खामियों के शोषण को रोकने के लिए गैर-निकोटीन ई-सिगरेट उत्पादों पर सीमा नियंत्रण भी रखा जाना चाहिए। वहां के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि ई-सिगरेट निर्माताओं द्वारा आयात प्रतिबंधों से बचने के लिए निकोटीन युक्त उत्पादों पर  "निकोटीन-मुक्त" लिखकर गलत तरीके से पैकेट पर जानकारी दी जाती है, जिससे बच्चे आसानी से ई-सिगरेट खरीदने में सक्षम हो जाते हैं, इस वजह से वहां के युवा अक्सर अनजाने में निकोटीन सूंघ लेते हैं और इसके आदी हो जाते हैं।

यह कितनी अच्छी बात है कि ऑस्ट्रेलिया के स्वास्थ्य मंत्री मार्क बटलर को इस बात की फ़िक्र है कि उनके राष्ट्र के युवा पीढ़ी को किस तरह नुकसान किया जा रहा है। 

स्वास्थ्य मंत्री ने आगे जानकारी दी की सुविधा स्टोर और अन्य खुदरा विक्रेताओं में ई-सिगरेट की बिक्री को समाप्त करने के लिए सरकार राज्यों और क्षेत्रों के साथ भी काम करेगी। 

ऑस्ट्रेलिया के मीडिया के अनुसार स्वास्थ्य मंत्री मार्क बटलर का मानना है कि यह समस्या "ऑस्ट्रेलियाई इतिहास में सबसे बड़ी खामी" बन गई है जिससे निपटने के लिए संघीय बजट में भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। 

बटलर के भाषण के एक अंश में कहा गया है, "लंबे समय तक धूम्रपान करने वालों को धूम्रपान छोड़ने में मदद करने के लिए ई-सिगरेट को दुनिया भर की सरकारों और समुदायों को एक चिकित्सीय उत्पाद के रूप में बेचा गया था।" उनके भाषण में ई-सिगरेट को लेकर आगे कहा गया है कि "ई-सिगरेट विशेष रूप से हमारे बच्चों के लिए मनोरंजक उत्पाद के रूप में नहीं बेचा गया था, लेकिन यह मनोरंजक उत्पाद बन गया है, जो आज ऑस्ट्रेलियाई इतिहास की सबसे बड़ी खामी है।

ऑस्ट्रेलिया के मीडिया के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार वहां के लोगों को धूम्रपान छोड़ने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए साक्ष्य-आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य सूचना अभियान के लिए बजट में धन में $ 63 मिलियन शामिल किया गया  हैं। यह भी जानकारी मीडिया में दी गई है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ लंबे समय से नए सिरे से धूम्रपान विरोधी विज्ञापन अभियान चलाने की मांग कर रहे हैं। आस्ट्रेलियाई लोगों को धूम्रपान व् ई-सिगरेट छोड़ने में मदद करने के लिए समर्थन कार्यक्रमों में $30 मिलियन का निवेश किया जाएगा और स्वास्थ्य चिकित्सकों के बीच धूम्रपान और निकोटीन समाप्ति में शिक्षा और प्रशिक्षण को मजबूत किया जाएगा।

ऑस्ट्रेलिया के उच्च विद्यालयों में ई-सिगरेट इस वक्त बच्चों के लिए व्यवहारिक मुद्दा बना हुआ है और यह प्राथमिक विद्यालयों में व्यापक होता जा रहा है। पिछले 12 महीनों में, विक्टोरिया की ज़हर हॉटलाइन ने चार साल से कम उम्र के बच्चों के बीमार होने या ई-सिगरेट का उपयोग करने से बीमार होने के बारे में 50 कॉल प्राप्त की हैं।

 इस खबर के अनुसार जरा भारत की जमीनी स्थिति को टटोलिये, युवाओं को जरा समझिये और फिर मौजूदा सरकार की स्थिति को भी जानिए। क्या भारत के स्वास्थ्य कर्मी बाकई इस मुद्दे को लेकर चिंतित हैं? विचार जरूर कीजियेगा?

- डॉ. अजय हार्डिया, निदेशक, 

देवी अहिल्या कैंसर हॉस्पिटल इंदौर 

डॉ. अजय हार्डिया विश्व स्वस्थ्य संगठन के इस वर्ष के थीम (ग्रो फ़ूड नॉट टोबैको) का करेंगे समर्थन

31 मई 2023 को आयोजित हो रहे विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर देवी अहिल्या कैंसर हॉस्पिटल इंदौर के निदेशक डॉ. अजय हार्डिया विश्व स्वस्थ्य संगठन के इस वर्ष के थीम (ग्रो फ़ूड नॉट टोबैको) का करेंगे समर्थन, संस्थान की मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीमती मनीषा शर्मा ने कहा, इस अवसर पर आम जनों के बीच बड़े पैमाने पर जागरूकता के लिए संस्थान द्वारा की जा रही है पहल।   

तम्बाकू उगाना हमारे स्वास्थ्य, किसानों के स्वास्थ्य औरपृथ्वी के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। तम्बाकू उद्योग, तम्बाकू उगाने के विकल्प के प्रयासों में हस्तक्षेप करता है साथ ही वैश्विक खाद्य संकट में भी योगदान देता है।

यह अभियान विश्व पटल पर सरकारों को तम्बाकू उगाने वाली सब्सिडी को समाप्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है और बचत का उपयोग किसानों को खाद्य सुरक्षा और पोषण में सुधार करने वाली अधिक टिकाऊ फसलों पर स्विच करने में सहायता करने के लिए करता है।

अभियान का मुख्य उद्देश्य

तम्बाकू उगाने पर सब्सिडी समाप्त करने और फसल प्रतिस्थापन कार्यक्रमों के लिए बचत का उपयोग करने के लिए सरकारों को संगठित करना जो किसानों को खाद्य सुरक्षा और पोषण को बदलने और सुधारने में सहायता करते हैं।

तम्बाकू कृषक समुदायों में तम्बाकू से दूर होने और स्थायी फसलें उगाने के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना। 

तम्बाकू की खेती को कम करके मरुस्थलीकरण और पर्यावरणीय गिरावट से निपटने के प्रयासों का समर्थन करना।  

टिकाऊ आजीविका कार्य में बाधा डालने के लिए उद्योग के प्रयासों को बेनकाब करना।

अभियान की सफलता का प्रमुख उपलब्धि उन सरकारों की संख्या होगी जो तंबाकू उगाने पर सब्सिडी समाप्त करने का संकल्प लेती हैं।

Monday, 3 April 2023

डॉ. कॉउंट सीजर मैटी जी की 127वीं पुण्यतिथि पर पढ़िए डॉ. अजय हार्डिया के आलेख


आज डॉ. कॉउंट सीजर मैटी जी को भारत याद कर रहा है। इसके साथ इटली के रिओला पोंटे स्थित अलवर आल्टो के चर्च में भी कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इसकी जानकारी आर्काइवो म्यूजिओ सीजर मैटी ए पी एस की ओर से सोशल मीडिया पर दी गई है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी के जनक डॉ. कॉउंट सीजर मैटी जी की आज 127वीं पुण्यतिथि है। इस दौरान इटली के कलाकार मिशेल वेंटुरी, घेरार्डो ज़ुबेर व् वेलेंटीना ने अपने सुखद संगीत के माध्यम से डॉ. कॉउंट सीजर मैटी जी को श्रद्धांजलि दिए हैं, लेकिन इससे कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो आपसे मैं साझा करना चाहता हूँ। 3 अप्रैल 1896 का जिक्र करूं उससे पहले 1895 को आपको समझना होगा। डॉ. कॉउंट सीजर मैटी जी की छवि को धूमिल की जा रही थी। एलोपैथिक चिकित्सकों के साथ उस दौर में निरंतर विवादें बढ़ती जा रही थी। कोंडेस्कु द्वारा 1895 में ही उन्हें जहर वाली तुर्की कॉफी परोस कर मारने की कोशिश भी हुई थी। उसके बाद फिर खबर आती है कि 3 अप्रैल 1896 को डॉ. कॉउंट सीजर मैटी का 87 वर्ष की आयु में निधन। जेफिरिनो तरुफी (किसान) द्वारा अपने खाता बही के कवर पर बनाए गए नोट्स के अनुसार, ताबूत को पोरेटा के संगीत के सम्मान के साथ सविग्नानो के छोटे चर्च में लाया जाता है। उस वक्त डॉ. कॉउंट सीजर मैटी जी के परिवार से मिलने के लिए तक़रीबन दो हज़ार लोग मौजूद होते हैं। 

इतिहास की कई वो बातें हैं जो हमें इन मुद्दों पर कई संदर्भ में बातें करने के लिए प्रेरित करती है। इतिहास में हमने कई महापुरषों को साजिश का शिकार होते पढ़ा है, देखा है और इसका इतिहास गवाह भी है, मगर मौजूदा स्थिति में इलेक्ट्रो होम्योपैथी कहां है? इलेक्ट्रो होम्योपैथी के साथियों से एक जानकारी साझा करूंगा कि जब आईडीसी की बैठक आयोजित की गई थी तब मैंने सरकार के अधिकारीयों को देवी अहिल्या हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में चल रहे तमाम गतिविधि की जानकारी लेने व् जाँच करने लिए आमंत्रित किया था। 

कुछ वक्त बाद जब सरकार द्वारा किसी तरह की एक्शन नहीं ली गई तो हमारी टीम द्वारा पीएमओ को भी इस बात की जानकारी दी गई, तो इसके जवाब में  स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के उप सचिव मोहन लाल जी द्वारा पत्र के माध्यम से हमें इस बात की जानकारी दी। ''विषय: इलेक्ट्रो होम्योपैथी के माध्यम से भारत में कैंसर रोगियों के इलाज के लिए कदम के सबंध में। महोदय, आपकी याचिका की सामग्री पर ध्यान दिया गया है। हालांकि, यह कहा जा सकता है कि, वर्तमान में, इलेक्ट्रो होम्योपैथी भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य देखभाल की प्रणाली नहीं है। प्रणाली की मान्यता के मुद्दे की वर्तमान में सरकार द्वारा गठित एक समिति द्वारा जांच की जा रही है। इसलिए, आपकी याचिका में उठाए गए मुद्दों पर विचार तभी हो सकता है जब इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रणाली को सरकार द्वारा मान्यता दी जाए''। 

दरअसल यह जवाब था। पीएमओ के भी इतिहास में यह याद किया जायेगा जब सरकार के सामने 8 लाख से अधिक कैंसर मरीज एक वर्ष में मृत्यु के शिकार हो रहे थे तो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारीयों को दिल्ली से इंदौर आना मुनासिब नहीं लगा। इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं है कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी के लिए भारत का स्वास्थ्य मंत्रालय फ़िलहाल सक्रिय भूमिका निभाना नहीं चाहता। 

हम सभी का तो संघर्ष का इतिहास रहा है। संघर्ष का वर्तमान भी है। संघर्ष का भविष्य रहेगा। मैटी साहब भी अपने दौर में इन उलझनों को खूब देखें, डॉ. एन एल सिन्हा जी के बारे में तो हिंदुस्तान ने अपने जमीं पर इतिहास को लिखा है। मौजूदा वक्त में सरकार अगर पैसिव भूमिका में फिट है तो मुझे लगता है कि हमें अपनी जिम्मेदारी को और बढ़ाने की जरूरत है। अपने संकल्पों के साथ और तेज़ी से बढ़ने की जरूरत है। 

हमारा मुख्य उदेश्य आम जन के स्वास्थ्य लाभ में भूमिका अदा करना है तो अपने उदेश्यों की प्राप्ति के लिए डॉ. कॉउंट सीजर मैटी जी के संघर्षों को यादकर, खुद को प्रेरित करते हुए इस नेक कार्य को करते हुए आगे बढ़ते रहना है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी के जनक व् पितृ पुरुष, विश्व को मानव विज्ञान की सेवा हेतु सिस्टम ऑफ़ मेडिसिन में सबसे आधुनिक और सर्वोत्तम दवा के रूप में उपहार देने वाले हम सभी के प्रेरक, युगद्रष्टा व् महान चिकित्सक डॉ. कॉउंट सीजर मैटी जी को उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन- डॉ. अजय हार्डिया, निदेशक, देवी अहिल्या कैंसर हॉस्पिटल इंदौर। 

भोपाल में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की ताकत: श्री ओम प्रकाश जैन जी द्वारा आगामी सम्मेलन में सरकार से समर्थन की अपील

इलेक्ट्रो होम्योपैथी कॉउंसिल ऑफ़ मध्य प्रदेश के अध्यक्ष श्री ओम प्रकाश जैन जी आगामी 4 दिसंबर 2024 को राष्ट्रीय इलेक्ट्रो होम्योपैथी दिवस पर ...